शरद पूर्णिमा की रात खुले आसमान में क्यों रखे जाते हैं खीर.? आइए जानते हैं इसका महत्व


शरद पूर्णिमा 2022:
आश्विन शुक्ल पूर्णिमा यानि शरद पूर्णिमा 09 अक्तूबर को मनाई जाएगी. इस दिन चंद्रोदय शाम 5.38 बजे होगा. इस दिन चांद 16 कलाओं से युक्त होता है. यानी की चांद का प्रकाश अपने शिखर पर होता है.

इस दिन माता लक्ष्मी, गणेशजी की पूजा के साथ खीर बनाकर उसे खुले आसमान के नीचे रखने की परंपरा है. आइये जानते हैं विद्वान पंडितों से कि इसका रहस्य क्या है और इससे जुड़ी मान्यता क्या है.?

शरद पूर्णिमा की रात आती हैं माता लक्ष्मी

शरद पूर्णिमा को कोजागरी पूर्णिमा भी कहते हैं. माना जाता है कि इस दिन माता लक्ष्मी पृथ्वी पर आती हैं और घर-घर भ्रमण करती हैं. इसलिए शरद पूर्णिमा पर मां लक्ष्मी की विशेष पूजा की जाती है. घरों में साफ-सफाई और सजावट की जाती है. यह मान्यता है कि इस रात जिन घरों में जागरण करते हुए माता का स्मरण किया जाता रहता है, माता लक्ष्मी उस घर में अंश रूप में विराजमान हो जाती हैं. साथ ही उस घर में धन सुख-समृद्धि आती है.

शरद पूर्णिमा की खीर 

यह भी मान्यता है कि शरद पूर्णिमा को लक्ष्मी जी की पूजा के बाद खीर बनाकर खुले आसमान के नीचे रख देना चाहिए और अगले दिन उसका सेवन करना चाहिए. इसके पीछे की वजह बताई जाती है कि इस दिन चंद्रमा पृथ्वी के करीब होता है और उसकी 16 कलाएं होती हैं. यह अमृत वर्षा करता है. इससे ऐसी स्थिति बनती है कि उसकी किरणों में औषधीय गुण उत्पन्न हो जाते हैं और उसके प्रभाव से खुले आसमान में रखी खीर भी औषधीय गुणों वाली हो जाती है. क्योंकि खीर में मिली सामग्री चीनी, चावल और दूध के कारक भी चंद्रमा ही माने जाते हैं. इन पर चंद्रमा का ही सर्वाधिक प्रभाव होता है. इसके चलते अगले दिन इसका सेवन करने वाले शख्स को बीमारियों से छुटकारा मिलता है. यानी की चमत्कार होता है.

जानिए शरद पूर्णिमा के कुछ फायदे 

शरद पूर्णिमा के दिन चांदनी रात में दूध से बने उत्पाद का चांदी के बर्तन में सेवन करना चाहिए. चांदी में प्रतिरोधक क्षमता होती है, इसमें दूध पीने या दुग्ध उत्पाद के सेवन से यही गुण दूध और दुग्ध उत्पाद में आ जाते हैं. इससे विषाणु दूर रहते हैं.

प्राकृतिक चिकित्सालयों में शरद पूर्णिमा के दिन बनाई गई खीर, खुले आसमान के नीचे रखने के बाद अगले दिन कुछ औषधियां मिलाकर दमा रोगियों को खिलाया जाता है. यह खीर पित्त शामक, शीतल सात्विक होती है, इससे बीमारी में लाभ मिलने के साथ चित्त का शांति देता है, आरोग्यता बढ़ाता है.

मान्यता है कि शरद पूर्णिमा पर रावण दर्पण के माध्यम से चंद्रमा की किरणों को नाभि पर एकत्र करता था ताकि उसका यौवन कम न हो.

शरद पूर्णिमा पर चांद को अपलक निहारने से नेत्र ज्योति बढ़ती है.शरद पूर्णिमा से सर्दी की शुरुआत हो जाती है और खीर गर्म होती है. इसलिए यह शरीर के लिए लाभकारी है. इसलिए कई आयुर्वेदाचार्य इसे अच्छा मानते हैं.

शरद पूर्णिमा पर क्या करें.?

शरद पूर्णिमा पर कुछ घंटे चांदनी रात में जरूर बैठना चाहिए.

इस दिन का वातावरण दमा रोगियों के लिए लाभकारी माना जाता है.

चांदनी रात में कम वस्त्रों में टहलने वाले व्यक्ति में सकारात्मक ऊर्जा बनी रहती है, इससे स्वास्थ्य अच्छा रहता है.

शरद पूर्णिमा की रात 10 से 12 बजे के बीच चंद्रमा की रोशनी अपने शिखर और वैभव पर होती है. इसलिए इस समय चंद्र दर्शन का प्रयास जरूर करना चाहिए.

शरद पूर्णिमा पर बरतें सावधानियां 

खीर को खुले आसमान के नीचे रखते वक्त इसे बारीक जालीदार किसी चीज से जरूर ढकें, ताकि कीड़े मकोड़े उस पर न जा पाएं.

अगर कहीं काफी लोग रहते हैं तो खुले में खीर रखते वक्त उसको इतनी ऊंचाई पर रखें कि किसी का पैर न लगे.

चूहे बिल्ली से खीर को बचाने का भी प्रयास करें, अच्छा हो जब तक खीर को छत पर रख रहे हैं तब तक आप भी रहें. इससे खीर तो गुणकारी बनेगी ही शीतल चांदनी रात आपकी सेहत को भी लाभ पहुंचाएगी

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