चार दिवसीय लोक आस्था का महापर्व छठ कल से शुरू; जाने इसके महत्व


Samvad AapTak : सूर्य उपासना एवं चार दिवसीय लोक आस्था का महापर्व छठ शुक्रवार से शुरू हो रहा है। चार दिनों तक चलने वाले इस पर्व की तैयारी कई दिनों से की जा रही है। विभिन्न छठ घाटों की साफ-सफाई एवं साज-सज्जा करने में युवा जोर-शोर से लगे हुए हैं । समस्तीपुर जिला के अलावा संपूर्ण बिहार में छठ को लेकर लोगों में उत्साह देखा जा रहा है। भारत के कोने-कोने से लोग अपने गांव पहुंच रहे हैं।

पौराणिक मान्यताओं के अनुसार देवी प्रकृति के छठे रूप और भगवान सूर्य की बहन छठी मैया को त्योहार की देवी के रूप में पूजा जाता है। यह हिंदू कैलेंडर विक्रम संवत में कार्तिक (अक्टूबर-नवंबर) के चंद्र महीने के छठे दिन दीपावली के छह दिन बाद मनाया जाता है । यह अनुष्ठान चार दिनों तक मनाया जाता है। इनमें पवित्र स्नान, उपवास और पीने के पानी से परहेज, पानी में खड़े रहना, और डूबते तथा उगते सूरज को प्रसाद (प्रार्थना प्रसाद) और अर्घ्य देना शामिल है।

महाभारत काल से हुई थी छठ पर्व की शुरुआत 

पौराणिक मान्यताओं एवं धर्म शास्त्र के जानकारों के अनुसार इस पर्व को सबसे पहले सूर्यपुत्र कर्ण ने सूर्य की पूजा करके शुरू किया था। कहा जाता है कि कर्ण भगवान सूर्य के परम भक्त थे और वे रोज घंटों तक पानी में खड़े होकर उन्हें अर्घ्य देते थे। सूर्य की कृपा से ही वे महान योद्धा बने। आज भी छठ में अर्घ्य दान की यही परंपरा प्रचलित है।


वैदिक काल से चला आ रहा छठ पर्व न सिर्फ बिहार की संस्कृति का अभिन्न अंग बन चुका है, बल्कि इसका अटूट सम्बन्ध बिहारियों के हृदय से जुड़ा हुआ है। सम्पूर्ण बिहार में इस पर्व को बहुत ही धुमधाम से मनाया जाता है। अब तो इस पर्व का प्रचलन बिहार, पूर्वी उत्तर प्रदेश, उत्तर-पूर्वी मध्य प्रदेश, सम्पूर्ण झारखंड सहित पूरे भारत में प्रचलित हो गया है।

छठ पूजा की धार्मिकता के साथ ही सामाजिक महत्व भी है। इस पर्व को लोग धार्मिक भेदभाव, ऊंच-नीच, जात-पात को भूलकर सभी एक साथ सामूहिक रूप में इसे मनाते हैं। सब एक समान एक ही विधि से पूजा करते हैं। सब एक साथ पुण्यसलिला या जलाशय के तट पर अपने हाथों में पूजन सामग्री से सजे सूप लिये एक जैसे ही दिखते हैं। सब एक समान ही सूर्यदेव को अर्घ्य देते है। प्रसाद भी एक जैसा ही होता है, जैसे कि गंगा (जलाशय) और भगवान भास्कर भी सबके लिए एक जैसे ही हैं। छठ बड़ा ही कठिन पर्व होता है, पर महिलाएँ अपने परिजन की सुख-सम्पन्नता और स्वस्थता के लिए इसे हँसते-गाते सहन कर लेती हैं। चार दिनों के लगातार उपवास सहित व्रती जीवनगत समस्त सुखों को त्यागती है, फर्श पर एक कम्बल या चादर के सहारे ही रात बिताती हैं, सिलाई विहीन कपड़ों का ही उपयोग करती है। इसमें सर्वत्र ही पवित्रता का विशेष ध्यान रखा जाता है। यह सामूहिक कर्म का विराट और भव्य प्रदर्शन है।

छठ पूजा का सबसे महत्वपूर्ण पक्ष

छठ पूजा का सबसे महत्त्वपूर्ण पक्ष इसकी सादगी पवित्रता और लोकपक्ष है। भक्ति और आध्यात्म से परिपूर्ण इस पर्व में बाँस निर्मित सूप, टोकरी, मिट्टी के बर्त्तनों, गन्ने का रस, गुड़, चावल और गेहूँ से निर्मित प्रसाद और सुमधुर लोकगीतों से युक्त होकर लोक जीवन की भरपूर मिठास का प्रसार करता है। इसके केंद्र में वेद, पुराण जैसे धर्मग्रन्थ न होकर किसान और ग्रामीण जीवन है। इस व्रत के लिए न विशेष धन की आवश्यकता है न पुरोहित या गुरु के अभ्यर्थना की। जरूरत पड़ती है, तो केवल पास-पडोस के सहयोग की। हिन्दू धर्म के विभिन्न देवी-देवताओं में सूर्य ही एकमात्र ऐसे देवता हैं, जिन्हें साक्षात् दर्शन किया जा सकता है। जो जगत की सृष्टि और पालन हेतु आधुनिक समस्त उर्जाओं के एकमात्र श्रोत हैं। सूर्य की किरणों में कई रोगों को नष्ट करने की क्षमता पायी जाती है। हमारे प्राचीन ऋषि मुनियों ने अपने अनुसन्धान के क्रम में इस सत्य को पहचाना, जिसे आज वैज्ञानिकों ने भी स्वीकार कर सिद्ध किया है कि विटामिन 'डी' का एकमात्र श्रोत सूर्य का प्रकाश ही है। इस अद्भुत पारलौकिक शक्ति के कारण सूर्य की उपासना सम्भवतः सभ्यता के विकास के साथ-साथ ही प्रारम्भ हो गयी।

समस्तीपुर से विकास कुमार पाण्डेय

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