शारदीय नवरात्र : प्रत्येक दिन देवी के अलग-अलग रूपों की होती है पूजा
संवाद आपतक न्यूज: सोमवार को कलश स्थापना के साथ ही शारदीय नवरात्र की शुरुआत हुई, भक्त श्रद्धालुओं के द्वारा पूजा पंडालों एवं मंदिरों के साथ-साथ घरों में देवी दुर्गा की आराधना की जा रही है। नवरात्रि में माता के नौ अलग-अलग रूपों की पूजा की जाती है प्रत्येक दिन देवी के अलग-अलग रूपों की विधिवत पूजन करने का प्रावधान है।मंगलवार को देवी के ब्रह्मचारिणी रूप की पूजा की गई। नौ दिनों तक शैलपुत्री, ब्रह्मचारिणी, चंद्रघंटा, कुष्मांडा, स्कंदमाता, कात्यायनी, कालरात्रि, महागौरी, सिद्धिदात्री तथा माता दुर्गा की पूजा की जाती है।
प्रथम रूप माता शैलपुत्री
मां दुर्गा का पहला स्वरूप शैलपुत्री है। पर्वतराज हिमालय के यहां पुत्री के रूप में उत्पन्न होने के कारण इनका नाम शैलपुत्री पड़ा। वृषभ-स्थिता मां दाहिने हाथ में त्रिशुल और बायें हाथ में कमल पुष्प धारण करती हैं। यही नवदुर्गाओं में प्रथम दुर्गा हैं। इनकी पूजा अर्चना शुरू करने से पहले कलश स्थापना की जाती है और इसके बाद भक्त दुर्गा सप्तशती का पाठ करते हैं।
क्या चढ़ाएं..?
देवी शैलपुत्री के चरणों में भक्त शुद्ध घी चढ़ाते हैं। ऐसा माना जाता है कि शुद्ध घी अर्पित करने से भक्तों को रोग और बीमारी से मुक्त जीवन मिलता है।
दूसरा रूप माता ब्रह्मचारिणी
मां दुर्गा की नव शक्तियों का दूसरा स्वरूप ब्रह्माचारिणी का है। यहां ब्रह्म का अर्थ तपस्या है। ब्रह्माचारिणी का अर्थ तप का आचरण करने वाली है। कहा भी है- वेदस्तत्वं तपो ब्रह्म-वेद तत्व और तप ब्रह्म शब्द का अर्थ हैं। ब्रह्माचारिणी देवी का स्वरूप पूर्ण ज्योतिमर्य और भव्य है। इनके दाहिने हाथ में जप की माला और बायें हाथ में कमण्डल है। मां ने भगवान शिव को पति स्वरूप में प्राप्त करने के लिए घोर तपस्या की थी। इस वजह से उन्हें तपश्चारिणी नाम से भी जाना जाता है।
क्या चढ़ाएं..?
देवी ब्रह्माचारिणी को परिवार के सभी सदस्यों की लंबी उम्र के लिए शक्कर अर्पित किया जाता है।
तीसरा रूप माता चंद्रघंटा
चंद्र: घण्टायी यस्या: सा आह्मादकारी अर्थात चंद्रना जिनकी घण्टा में स्थित हो, उन देवी का नाम चंद्रघंटा है। मां की तीसरी शक्ति का नाम चंद्रघंटा है। नवरात्रि- उपासना में तीसरे दिन इनके विग्रह की पूजा होती है। इनका स्वरूप शान्तिदायक और कल्याणकारी है। इनके मस्तक में घंटे के आकार का अर्धचंद्र है, इसी कारण से इन्हें चंद्रघंटा देवी कहा जाता है। इनके शरीर का रंग स्वर्ण के समान चमकीला है और इनके दस हाथ है। मां के दसों हाथों में खडग, शस्त्र और बाणी आदि अस्त्र विभूषित हैं।
चौथा रूप माता कुष्मांडा
कुव्सित: उष्मा कूष्मा अर्थात त्रिविध ताप युक्त संसार जिनके उदर में स्थित है। वह देवी भगवती कूष्मांडा कहलाती हैं। यह मां का चौथा स्वरूप है। अपनी मंद, हल्की हंसी द्वारा अण्ड अर्थात ब्रह्मांड को उत्पन्न करने के कारण इन्हें कूष्मांडा देवी के नाम से जाना जाता है। कहते हैं कि जब सृष्टि का अस्तित्व नहीं था, चारों ओर अंधाकर ही अंधकार था, तब तो कूष्मांडा ने अपने ईषत् हास्य से ब्रह्मांड की रचना की। इसलिए यही सृष्टि का आदि स्वरूपा, आदि शक्ति हैं। इनके पहले ब्रह्मांड का अस्तित्व ही नहीं था।
पाचवां रूप स्कन्दमाता
छान्दोम्य श्रुति के अनुसार भगवती शक्ति से उत्पन्न हुए सनत्कुमार का नाम स्कन्द है। उनकी माता होने से स्कन्दमाता कहलाती है। भगवान स्कन्द की माता होने के कारण मां दुर्गा के इस पांचवें स्वरूप को स्कन्दमाता के नाम से जाना जाता है। मां का यह रूप उदार और स्न्हेशील है। इनकी उपासना नवरात्रि पूजा के पांचवे दिन होती है। इस दिन साधक का मन विशुद्ध चक्र में होता है। मां की गोद में भगवान स्कन्द जी बालरूप में बैठे रहते हैं।
छठा रूप माता कात्यायनी
शास्त्रों के अनुसार देवताओं के कार्य सिद्धि के लिए महर्षि कात्यायन के घर माता प्रकट हुई, जिसे ऋषि ने अपनी कन्या माना, तभी से इनका नाम कात्यायनी पड़ा, ब्रज की गोपियों ने कृष्ण को अपने पति के रूप में पाने के लिए माता कात्यायनी की पूजा यमुना तट पर की गई थी, इसलिए ब्रज की अधिष्ठात्री देवी के रूप में मां कात्यायनी आज भी प्रसिद्ध हैं।
सातवां रूप माता कालरात्रि
सबको मारने वाले काल को भी रात्रि (विनाशिका) होने से उनका नाम कालरात्रि है। मां की सातवीं शक्ति कालरात्रि के नाम से जानी जाती है। इनके शरीर का रंग घने अंधकार की तरफ काला है। सिर के बाल बिखरे हैं। गले में बिजली तरफ चमकने वाली माला है। इनके तीन नेत्र हैं। ये तीनों नेत्र ब्रह्मांड के समान गोल हैं। इनसे बिजली के समान चमकीली किरणें निकलती हैं।
आठवां रुप माता महागौरी
कठोर तपस्या के माध्यम से मां ने महान गौरव प्राप्त किया था, इसलिए मां के इस रूप को महागौरी कहा जाता है। मां दुर्गा की आठवीं शक्ति का नाम महागौरी है। इनका वर्ण पूर्ण रूप से गौर है। इनकी गौरता की उपमा शंख, चंद्र और कुंद के फूल से दी गई है। इनके समस्त वस्त्र व आभूषण आदि भी श्वेत हैं। इनकी चार भुजाएं हैं। इनका वाहन वृषभ है। इनका दाहिना हाथ अभय मुद्रा में और नीचे वाला दाहिने हाथ में त्रिशुल है। ऊपर वाले बायें हाथ में डमरू और नीचे के बायां हाथ वर मुद्रा है। इनकी मुद्रा शांत है।
नौवां रूप माता सिद्धिदात्री
नौवां दिन समर्पित है मां सिद्धिदात्री को :- सिद्धि यानी की मोक्ष को देने वाली, इसी कारण उनका नाम सिद्धिदात्री है। मां की नौवीं शक्ति का नाम सिद्धिदात्री है। मां सभी तरह की सिद्धियों को देने वाली हैं। मां सिद्धिदात्री चार भुजाओं वाली हैं। इनका वाहन सिंह है। ये कमल पुष्प पर आसीन हैं। इनकी दाहिनी तरफ के नीचे वाले हाथ में चक्र, ऊपर वाले हाथ में गदा और बायीं तरफ के नीचे वाले हाथ में शंख और ऊपर वाले हाथ में कमल पुष्प है। नवरात्रि पूजन के नवें दिन इनकी उपासना की जाती है।
इस प्रकार 9 दिनों तक मां के अलग-अलग स्वरूपों की पूजा-अर्चना के बाद कुमारी कन्याओं को भोजन करा कर दुर्गा पूजा मनाया जाता हैं।
रिपोर्ट, विकास कुमार पाण्डेय
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